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सुबह की धुन / नरेन्द्र जैन
Kavita Kosh से
अकार्डियन बजाता हुआ
यह भालू
कभी आँख नहीं झपकाएगा
उसके वाद्य की धुन
नहीं होगी कभी ख़त्म
घर में शोर है चौतरफ़ा
एक जड़ दुनिया में आँखें
झपकाता है बच्चा
आँख खुली तो दुनिया सामने
आँख झपकी तो
अन्धेरे की रंगीन सृष्टि
ऎसे समय में
जब शोर और ख़ामोशी
एक-दूसरे के पर्याय हों
तीता भालू की तरफ़
बढ़ता है
अकार्डियन बजाता भालू
छेड़ता है
सुबह की धुन