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सुबह की धूप (कविता) / रमेश कौशिक
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यह सुबह की धूप है कितनी रंगीली ।
फूल-सी सुकुमार सावन-सी सजीली ।।
हंसनी-सी श्वेत, सपनों से भी हलकी,
सोम रस-सी यह दिशा से फूट निकली ।
लाल, पीली, नववधू-सी है लजीली ।।
शून्य में चुप, ओस की पायल बजाती,
आ रही है पक्षियों संग गीत गाती।
हँस रही है ताल पर की दूब गीली ।।