भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुबह लगे यूँ प्यारा दिन / सूर्यभानु गुप्त

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुबह लगे यूँ प्यारा दिन
जैसे नाम तुम्हारा दिन
 
पाला हुआ कबूतर है
उड़, लौटे दोबारा दिन
 
दुनिया की हर चीज़ बही
चढ़ी नदी का धारा दिन
 
कमरे तक एहसास रहा
हुआ सड़क पर नारा दिन
 
थर्मामीटर कानों के
आवाज़ों का पारा दिन
 
पेड़ों जैसे लोग कटे
गुज़रा आरा-आरा दिन
 
उम्मीदों ने टाई-सा
देखी शाम, उतारा दिन
 
चेहरा-चेहरा राम-भजन
जोगी का इकतारा दिन
 
रिश्ते आकर लौट गए
हम-सा रहा कुँवारा दिन
 
बाँधे बँधा न दुनिया के
जन्मों का बंजारा दिन
 
अक़्लमंद को काफ़ी है
साहब! एक इशारा दिन