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सुबह शाम जब कोयल बोले / सुधेश
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सुबह शाम जब कोयल बोले
सूखे कानों में रस घोले।
जंगल तो घटते जाते हैं
हरे पेड कटते जाते हैं
चिड़िया कोयल कहाँ बसेंगी
मेरे मन में चिन्ता डोले।
दुनिया कितने शोर भरी है
मारकाट है तना-तनी है
ऐसे में कितना अच्छा हो
मीत मिले धीरे से बोले।
चलो गाँव में जा बसते हैं
अपनी लघु दुनिया रचते हैं
जहाँ पड़ोसी सुबह शाम को
हिले-मिले कुछ बोले-टोले।
जहाँ लगे हों मेले-ठेले
नहीं किसी को कोई ठेले
ले हाथ-हाथ में चल सकें
कोई न रहे वहाँ अनबोले।