भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुबह स्वप्न में देखा मैंने / कमलेश द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुबह स्वप्न में देखा मैंने तुम मेरे घर पर आये।
स्वप्न सुबह का सच होता है तो यह भी सच हो जाये।

सपने देखे कई रात भर
लेकिन कोई याद नहीं।
तुमको देखा, कुछ भी मैंने
देखा उसके बाद नहीं।
सुबह स्वप्न में तुमने मुझसे बातें कीं फिर मुस्काये।
स्वप्न सुबह का सच होता है तो यह भी सच हो जाये।

जितने पल भी साथ रहे तुम
वे पल ख़ुशियों में बीते।
उस पल का क्या कहना जब हम
अपना दिल हारे-जीते।
सुबह स्वप्न में मेरे सँग-सँग तुमने कितने रास रचाये।
स्वप्न सुबह का सच होता है तो यह भी सच हो जाये।

" सपने तो सपने होते हैं
सपने पर विश्वास नहीं।"
ऐसा वे ही कहते जिनको
अपने पर विश्वास नहीं।
सुबह स्वप्न में मैंने अपने विश्वासों के फल पाये।
स्वप्न सुबह का सच होता है तो यह भी सच हो जाये