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सुभाष सा / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

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मैं सुभाष-सा वीर बनूँ
कुछ ऐसा मंत्र सीखा दे माँ
मैं भारत की शान बनूँ
कुछ ऐसी सीख सिखा दे माँ
तेजस्वी प्रतिभाषाली थे वे
गौर वर्ण मुखमंडल था
आँखों की भी ज्योति निराली
मन तो पावन चंचल था
देश प्रेम किसको कहते हैं
वे ही हमको सिखा गये
भारत को स्वतंत्रता देकर
कौन दिशा कि ओर गये?
अब वे आयेंगे तो उनको
आँखों पर बिठलाऊँगा
जो भी आज्ञा देंगे मुझको
पूरी कर दिखलाऊँगा।