भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुमधुर स्मृति में होता नित / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुमधुर स्मृति में होता नित ही मधुर मिलन-दर्शन-सुस्पर्श।
मधुर-मनोहर चलती चर्चा, चारु-मधुर उपजाती हर्ष॥
मधुर भाव, शुचि चाव मधुर, माधुर्य नित्य पाता उत्कर्ष।
मधुर नित्य निर्मल रसमय में रहता नहीं अमर्ष-विमर्श॥