भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुरंग में / अग्निशेखर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बरसों लम्बी संकरी सुरंग में
टटोलते हुए एक-एक क़दम
हम दे रहे हैं कितना इम्तेहान
फ़िलहाल सरक रहे हैं हम
सुई की नोक जितनी
रोशनी की तरफ़