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सुरसरि-अंग लगाई / प्रेमलता त्रिपाठी

धन्य सखा केवट निपुनाई ।
पार करन सुरसरि रघुराई ।

संग सिया समेत लघु भ्राता,
कल कल सुरसरि-अंग लगाई ।

केवट के सुन वचन अनोखे,
भाव भरी भगवन प्रभुताई ।

जग माया तुम पालन हारे,
करूँ केहि रूप सेवकाई ।

भक्तन के तुम हो हितकारी,
चरण धरो प्रभु नौका आई ।

पार करूँ मैं तुमको जैसे,
भवसागर प्रभु पार लगाई ।

कृपा करो इतनी जग त्राता
और न चाहूँ मैं उतराई ।