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सुरापान को, प्रणय गान को / सुमित्रानंदन पंत

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सुरा पान को, प्रणय गान को
सखे, समझते जो अपराध,
जो रूखे सूखे साधू हैं,
भाता जिनको वाद विवाद;
स्वर्ग लोक जाकर वे उसको
कर देंगे नीरस, छबि हीन,
स्वर्ग प्राप्ति से तब क्या फल? हम
यहीं सुरा पी हरें विषाद!