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सुरुजक पाग / शारदा झा
Kavita Kosh से
भोरहि भोर अद्भुत संजोग
सितायल दूबि पर चमकैत भोर
जकर एक आँखि मे रहै
बूढ़, मौलायल आ घसल अठन्नी सनके चान
आ दोसर आँखि मे
नबका ललहौन पाग पहिरने सुरुज
राति अपन आँचर त'र सँ
चिड़ै-चुनमुनि के कैलक फराक
हाथ मे दैत समुच्चा अकास आ हुलास
जकर उड़ान कियो नापि नै सकैए
चौक परका गहमा-गहमी
स्वागत गान अछि सुरुजक लेल
चान एकपेरिया धेने चलल जा रहल
नवविवाहिता बेटीक बाप सन
अपन रजनीक हाथ
सुरुजक हाथ मे दैत
जकर सींथि आब लाल टुहटुह भेल
नवदिनक बाट हेरैत अछि
यैह असीस देने जाइत अछि
सब दिन एकटा नबका भोर होइ
तहियो जहिया ओकर अस्तित्व
कम होइत होइत
समाप्त भ' जाइ!!