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सुर्ता-पद-निर्वाण (2) / अछूतानन्दजी 'हरिहर'

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सुर्ता अनुभव पद में आन, ज्ञान निर्वाण लहै।
यहाँ पक्षपात नहिं कोय, अंध विश्वास दहै॥
सुर्ता रोचक भयानक भर्म, लहर में क्यों है बहै।
अब खोज ले यथारथ ज्ञान, परख सत पंथ गहै॥
ये तो आलम अलख हुजूर, नूर भरपूर रहै।
लखि माया ब्रह्म विकास, भर्म दुख क्यों सहै॥
जग जड़ चेतन का मेल, खेल कुछ और न है।
सुन मुक्तानन्द ये सैन, बैन "हरिहर" है कहै॥