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सुवना कल्पथे पिंजरा म रे / पीसी लाल यादव

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सुवना कल्पथे पिंजरा म रे
मैना तल्पथे पिंजरा म रे।

माया-मोह के छंदना छंदाये हवे सुवना,
लोभ-लालच के बंधना म बंधाए हवे सुवना।
सुवना कल्पथे पिंजरा म रे...

अहम्के अंधरौटी म बईहा आँखी मुंदागे,
जनम-जुग कंचन काया चारी म रउँदागे।
सुवना कल्पथे पिंजरा म रे...

मनुख जोनी पा के जनम-जतन ल भुलाए,
अरर भांठा मिरगा दऊँड़े रामरतन बिसराए।
सुवना कल्पथे पिंजरा म रे...