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सूखा -सूखा सावन सारा / तारकेश्वरी तरु 'सुधि'

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सूखा-सूखा सावन सारा
गुज़रा ऐसे जीवन सारा

माली बन सींचा था उसने
उजड़ा क्षण में उपवन सारा

उनके कद़मों की आहट से
पावन हुआ तपोवन सारा

रात अँधेरी तो थी लेकिन
जगमग यादों से मन सारा

बाँध तिजोरी में रखती हूँ
तेरी यादों का धन सारा

रात अभी बाकी थी लेकिन
ख़्वाब अधूरा तुम बिन सारा

उनकी यादें दीपक बनकर
जीवन करती रौशन सारा