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सूरज-३ / ओम पुरोहित ‘कागद’

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अकाल के दिनों
मरुस्थल पर
आता है
हमेशा
सूरज
मानों
आता है
कोई बुजुर्ग
बच्चों की
मौत पर
संवेदना प्रकट करने
धीरे
धीरे !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"