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सूरज का अँधेरों से / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
सूरज का अँधेरों से, कोई फाइट कहाँ है।
अब पूछ रही है पुलिस कि बता नक्सलाइट कहाँ है।
कुछ तो पुस्तकों में है और कुछ कापियों में है
देखेगा जाँचने वाला, ही रोंग-राईट कहाँ है।
ख़तरा है जान जाने का, ख़ौफ़ फिरौती का भी,
लगता अब देश में कानून कोई टाइट कहाँ है।
हरगिज ना कहीं शांति अब किसी को भी मिलेगी
अपराधियों से सुरक्षित बची कोई साईट कहाँ है।
इतना ना ज़माने से बड़ा ख़ुद को समझ तू
भगवानजी की तरह तू आलमाईट कहाँ है।
हरदम ही कमियाँ देखी, कहीं नुक्स भी निकाला
लगता तेरी आँखों में, कोई लाइट कहाँ है।
गिरने का उसे ख़ौफ़ नहीं कुछ भी है ‘प्रभात’
उसकी नज़रों में तो कहीं, कोई हाइट कहाँ है। S