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सूरज के पास धूप न पानी नदी के पास / शैलेश ज़ैदी

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सूरज के पास धूप न पानी नदी के पास।
मिट्टी का एक जिस्म है ख़ाली सभी के पास॥

क्या हादसा हुआ कि निशाँ तक नहीं बचा।
पहले तो एक घर था यहाँ इस गली के पास॥

क्यों पत्थरों से फोड़ के सिर बैठ जाइए।
क्यों ज़िन्दगी को देखिए बेचारगी के पास॥

आँखें अगर न भीगें तो हरगिज़ ग़ज़ल न हो।
उगते हैं पेड़-पौधे हमेशा नमी के पास॥

इल्ज़ाम जितना चाहें लगायें खुशी से आप।
कब गन्दगी पहुँचती है पाकीज़गी के पास॥

आँसू, चुभन, मुसीबतें, दुख-दर्द, वेदना ।
हर दिल की संपदा है मेरी शायरी के पास॥

वो पेड़ कैसा धूप में तपकर निखर गया।
साया मुसाफ़िरों को मिला बस उसी के पास।।