सूरज तो उग आया लेकिन / लाखन सिंह भदौरिया
सूरज तो उग आया लेकिन, किरणों पर प्रतिबन्ध लगे हैं।
सूरज के उगने की खुशियाँ, किसको नहीं मुझे बतलायें,
पर उगने की ही खबरों से कोई कब तक मन बहलाये,
वचनों से मिलते आश्वासन, सपनों पर प्रतिबन्ध लगे हैं।
सूरज तो उग आया लेकिन, किरणों पर प्रतिबन्ध लगे हैं।
अन्तरिक्ष में उलझी किरणें, अभी झोंपड़ी में तम सोया,
अभी टटोल रहा, पथ जन-जन, अँधियारे में खोया-खोया,
चाँदी का होता अभिनन्दन, रत्नों पर प्रतिबन्ध लगे हैं।
सूरज तो उग आया लेकिन, किरणों पर प्रतिबन्ध लगे हैं।
मुक्ति, स्वार्थ-कारा में बन्दी, हुआ न सुख महसूस मुक्ति का,
दिल्ली की गलियों के आगे, निकला नहीं जुलूस मुक्ति का,?
चलने को मिल रहा निमंत्रण, चरणों पर प्रतिबन्ध लगे हैं।
सूरज तो उग आया लेकिन, किरणों पर प्रतिबन्ध लगे हैं।
भागीरथ के भाग्य जगे हैं, भागीरथी स्वयं उमही है,
सगर सुतों की राख अभागिन, दो बूँदों को तरस रही है
जन्ह्नवऋषि कर रहे आचमन, तृषितों पर प्रतिबन्ध लगे हैं।
सूरज तो उग आया लेकिन, किरणों पर प्रतिबन्ध लगे हैं।