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सूरज रै बापू री दीठ / कन्हैया लाल सेठिया

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कोनी पाक्यो
हाल
गिगनार री
आंख रो
मोतियो बिंद,
बिना सीध
डंधावै,
निरथक
बादळां रा घड़ा,
खळकावे
कणांईं
धायोडै़ समदां पर
कणांईं
हैंकड़ डूगरां पर,
पड़ी है
साव सूखी
अणबोल धरती,
बिना घलायां
पून रो सुरमो
कोनी बंधै
सूरज रै
बापू री दीठ !