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सूरज लील लिए / वीरेंद्र आस्तिक
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हिरना
इस जंगल में
कब पूरी उम्र जिए
घास और पानी पर रहकर
सब तो, बाघों के मुँह से
निकल नहीं पाते
कस्तूरी पर वय चढ़ते ही
साये, आशीषों के
सर पर से उठ जाते
कस्तूरी के
माथे को
पढ़ते बहेलिए
इनके भी जो बूढ़े मुखिया होते
साथ बाघ के
छाया में पगुराते
कभी सींग पर बैठ
चिरैया गाती
या फिर मरीचिकाओं पर मुस्काते
जंगल ने
कितने
तपते सूरज लील लिए