भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूर्य / भारत यायावर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


चिड़ियों ने चहचहा कर

फूलों ने मुस्करा कर

ओस की बूंदों ने

स्वर्णिम आभा से चमक कर

हर रोज़ तुम्हारी अगवानी की

पर मैं क्यों नहीं कर पाया?

पूरा वर्ष उदास रहा और आभाहीन

अपने ही अंधेरे में दुबका हुआ

बाहर की उथल-पुथल

और शोर-शराबों को सुनता रहा

दुखी होता रहा और रोता रहा

बाहर निकलने से घबराता रहा

अब नए वर्ष में

नई आकांक्षा और आशा और उत्साह के साथ

तुम्हारा स्वागत करते हुए भी

मेरा हृदय

आशंकाओं का द्वीप बना हुआ है


(रचनाकाल : 1991)