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सूर्य / भारत यायावर
Kavita Kosh से
चिड़ियों ने चहचहा कर
फूलों ने मुस्करा कर
ओस की बूंदों ने
स्वर्णिम आभा से चमक कर
हर रोज़ तुम्हारी अगवानी की
पर मैं क्यों नहीं कर पाया?
पूरा वर्ष उदास रहा और आभाहीन
अपने ही अंधेरे में दुबका हुआ
बाहर की उथल-पुथल
और शोर-शराबों को सुनता रहा
दुखी होता रहा और रोता रहा
बाहर निकलने से घबराता रहा
अब नए वर्ष में
नई आकांक्षा और आशा और उत्साह के साथ
तुम्हारा स्वागत करते हुए भी
मेरा हृदय
आशंकाओं का द्वीप बना हुआ है
(रचनाकाल : 1991)