भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सूर्योदय-पूर्व / बलदेव वंशी
Kavita Kosh से
अछोर अंधकार सघन,ऊपर
हिल्लौलता हूकता हुंकारता जल नीचे,फेनिल
सागर तट पर...
अचानक, अंगार रेखा दिख गई
लो !
अग्नि के ओभ-विलास की
अनु-लिपि सहसा लिख गई !
अंगार रेखा दिख गई...