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सृजन रुकता नहीं / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
काफी तेज बारिश हुई है
लगा एक मुश्किल समय सामने है
फूलों की मुश्किल कि उन्हें धोने की जरूरत नहीं थी
और बेवजह उनके धुले चेहरे मुर्झाने लगे
इतना अधिक पानी कि पत्ते जरूर चमकने लगे।
सभी तरफ से घिरे बादल भी
रोशनी को नहीं रोक सकते
मैदान जल से भरे हुए
अब लोग क्या काम करें
वे चुपचाप थके हुए से
धूप का करते हुए इंतजार
गुलाब के कांटे बिल्कुल धारदार
पत्तों की नोक तक दिखती है
पक्षियों के बिना सूना आकाश
फिर भी सृजन रुकता नहीं
घास में हरियाली पहले से अधिक असरदार।