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सृष्टि / सुधीर सक्सेना

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सूर्य तपता है
समुद्र दिन भर औटता है
धरती के प्याले में
पानी भाप बनकर उड़ता है
रात पागल चन्द्रमा चखता है
प्याले में शेष नमक का स्वाद