सृष्टि के तिलिस्म / अंजना टंडन
सृष्टि के तिलिस्म
अनियमित नहीं
मायावी भी नहीं
घर के नियमों जैसे ही सृष्टि के तिलिस्म हैं,
अज्ञानी का ज्ञान
निर्लप्त का प्रेम
अबोध का बोध
यायावर की ठिठकन
सब की डायरी में लिखे हैं
यथा अनुसार नुस्ख़े ,
नक्षत्र सितारे भोर और शाम
समय पर उठना और लगा देना काम पर
बच्चों को तैयार कर स्कूल भेजने जैसा ही है
ईश्वर वाकई में कहीं हैं....तो स्त्री ही होगा
भीगने, तपने, जमने के मौसम
उसने स्वयं ही गढ़े होगें,
वाकई
जुनून में आई औरत कुछ भी कर गुजरती है,
हर पेट का राशन जुगाड़ना
अंडे में पीतक एकत्रित करने जैसा ही है
ओवम की तरफ लपकते
हज़ारों स्पर्म
ईश्वर का उपालंभ है
अतंतः बस
एक ही काम आता है
असहमति में उसके ’ना’ की मजबूती
कोई भी पीर फकीर रत्न नगीने नही भेद पाया ,
सारे यक्ष प्रशनों के जवाब जानते बूझते भी
जवाब में कोरी निर्लप्त सी मुसकान,
उस आदिम नाद को पता करने के लिए
पत्थरों का टकराव नही
बिग बैंग की परिकल्पना भी नहीं
बस हर शै, शगूफा, शगल में ध्यान सी शिद्दत चाहिए,
इसीलिए तो
छम छम बरिशों से उठती सुगँध
’’फ्रेगंस आँफ वुमन’’ कहलाती है....।