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सेब / महेश वर्मा
Kavita Kosh से
जब इतनी बारिश लगातार हुई
कि डूब सकता था कुछ भी
मैं भागकर कमरे में आया और
उठाकर बाहर आ गया - यह अधखाया सेब।
मुझे याद आया जब लगी थी आग पिछली गर्मियों में
तब भी मैंने बचाया था -
एक अधखाया सेब।
जाड़े में धीमे सड़ती हैं चीजे़ं लेकिन
पाले में उँगलियाँ गलने से पहले भी
मैनें ज़मीन से उठाकर रख लिया था जूठा सेब।
इससे पहले कि इसमें ढूँढ़ लिया जाए कोई संदर्भ
इस बेकार की चीज़ को -
मैं उछालता हूँ आपकी ओर।