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सो जाओ रात / पुष्पेन्द्र फाल्गुन
Kavita Kosh से
चारों तरफ
बरस रही है रात
नभ-मंडल का पर्दा खुल गया है
चाँद पर लिख इबारत
रास्ते
सोने चले गए हैं
चांदनी दबे पैर
आ गई है दूब पर
शबनम
बनाने लगी है घर
पूरे लय में
सितारे खेलते हैं
आँख मिचौनी
शहर की रोशनी से
सूर्य को सपने में देख
रास्ते चौंकते हैं
नींद में
शबनम की तन्मयता
सितारों का संघर्ष देख
अँधेरे को भी नींद आने लगी
नीरव मौन को
सुलाना जरूरी है
कि इससे भंग हो रही है
रास्ते की नींद
सितारों का संघर्ष
शबनम की तन्मयता
आओ
मौन को सुलाएं
नींद तुम लोरी गाओ
मैं टोकरी में सपने भर
खड़ा हो जाता हूँ
मौन के सिराहने
रात का बरसना ज़ारी है
तो रहा करे
कसम से