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सोच-अेक / ॠतुप्रिया
Kavita Kosh से
टाबर हाँसै
जिंयां फूल खिलै
टाबर आपरी बातां
अर
किलकार्यां री
सौरम स्यूं
घर रौ
खूणौ-खूणौ भरै
टाबर हुवै
भगवान रौ रूप
म्हारौ सुवाल है
कै टाबरां नै
जणौ-कणौ क्यूं मारै
बै’
टाबरां रौ जीवण
ईंयां किंयां सुंवारै!