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सोचा, हुआ परिणाम क्या / हरिवंशराय बच्चन
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सोचा, हुआ परिणाम क्या?
जब सुप्त बड़वानल जगा,
जब खौलने सागर लगा,
उमड़ीं तरंगे ऊर्ध्वगा,
लें तारकों को भी डुबा, तुमने कहा-हो शीत, जम!
सोचा, हुआ परिणाम क्या?
जब उठ पड़ा मारुत मचल
हो अग्निमय, रजमय, सजल,
झोंके चले ऐसे प्रबल,
दे पर्वतों को भी उड़ा, तुमने कहा-हो मौन, थम!
सोचा, हुआ परिणाम क्या?
जब जग पड़ी तृष्णा अमर,
दृग में फिरी विद्युत लहर,
आतुर हुए ऐसे अधर,
पी लें अतल मधु-सिंधु को, तुमने कहा-मदिरा खतम!
सोचा, हुआ परिणाम क्या?