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सोना के थारी भोजना परोसल / अंगिका लोकगीत
Kavita Kosh से
♦ रचनाकार: अज्ञात
सोना के थारी भोजना परोसल, खैबौ<ref>खाता नहीं</ref> न करै घनसाम<ref>घनश्याम</ref> हे,
सखी कोहबर घर में।
बैठल एक भगबान हे, सखी कोहबर घर में॥1॥
सोने के झारी गँगाजल पानी, पीबौ न करै घनसाम हे,
सखी कोहबर घर में।
बैठल एक भगबान हे, सखी कोहबर घर में॥2॥
पाँचहिं पान पँचबीरबा लगैलऊँ<ref>लगाया</ref>, खैबौ न करै घनसाम हे
सखी कोहबर घर में।
बैठल एक भगबान हे,सखी कोहबर घर में॥3॥
चुनि चुनि फूलबा के सेजिया बिछैलऊँ<ref>बिछाया</ref>, सूतबो न करै घनसाम हे
सखी कोहबर घर में।
बैठल एक भगबान हे, सखी कोहबर घर में॥4॥
शब्दार्थ
<references/>