सोने की खदानों की खोज में / स्वप्निल श्रीवास्तव
हम उन लोगों के बीच रहते हैं
जो हमेशा सोने की खदानों की खोज में
लगे रहते हैं
पुराने संग्रहालयों में तलाशते रहते हैं
खजाने का नक़्शा
वे उन दुर्गम जगहों पर आसानी से
पहुँच जाते हैं जहाँ सामान्यतः जाना
होता है कठिन
वे खोदते रहते हैं ज़मीन
तोड़ते रहते हैं पहाड़
समुद्र की अतल गहराइयों में
पीतल के घड़े में रक्खे प्राचीन सिक्कों
की खनक सुनते हैं
वे दुनिया में इस तरह रहते हैं
जैसे उन्हें अनन्तकाल तक जीना हो
वे सात पुश्तों के लिए वैभव का
इन्तज़ाम करते हुए एक दिन मर जाते हैं
वे कभी नही सोचते कि पृथ्वी
सबसे सुन्दर जगह है
यहाँ गर्व करने लायक बहुत-सी
चीज़ें हैं
वे पहाड़ों समुन्दरों नदियों चाँद सितारों के
बारे में कोई बात नहीं करते
वे नहीं जानते कि पक्षियों के कलरव
के सामने धीमी पड़ जाती हैं
संगीत की ध्वनियाँ
वे दुनिया को धीरे-धीरे नरक
बनाते रहते हैं और अपनी नृशंस ख़ुशी
से आबादी के बड़े हिस्से को बदहाल बना देते हैं