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सोयी है संजो कर आँसू / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
बरसों रोयी है
अपने प्रियतम
मेघ के वियोग में
ममतामयी मरुधरा
सोयी है
संजो कर आंसू
क्यों चीरती हो
इसका आंचल
क्यों ढूंढते हो
कहां मिलेगा
इस के आंचल में
अब मीठा जल!