भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सोहनी का गीत / गोरख पाण्डेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेड़ पर राजा के घोड़े की टाप
बिवाई फटे पैर
हम निकालतीं खर-पतवार
ताकि पौधों को रस मिले
फले-फूलें पौधे
खेतों में सोना बरसे
हमारे फटे आँचल से
रास्ते में गिर जाता है
मजूरी का अनाज ।

राजा के हाथ में चाबुक
बिवाई फटे पैर
हम निकालतीं खर-पतवार
ताकि पौधों को रस मिले
फले-फूलें पौधे
खेतों में सोना बरसे
जीवन सुखी हो
हमारी पीठ पर चाबुक के निशान
हमारे गीतों में राजा के घोड़े की टाप

चाबुक जल जाए
भसम हो जाए राजा का घोड़ा
हमारे गीतों में पौधों की
सुआपंखी हरियाली हो
उगाया करें हम
मिट्टी से सोना
हमें आँचल दूसरों के आगे
पसारना न पड़े कभी ।