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सौगन / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
मत ठमी
म्हारी कलम
जठै तांई
नहीं समझै
हियो हियै रो मरम
तोड़ै
भूख स्यूं मरतो
मिनख दम
नहीं मिलै
लुगाई नै
गाबो
ढंकण नै सरम
बिकै
पईसां रै सट्टै
ईमान’र धरम
नहीं टूटै
जात’र पांत रो
भरम
बठै तांई
मत ठमी
म्हारी कलम
तनै सबद री सौगन !