भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्टेशन पर / ध्रुव शुक्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत देर से
इंजन में इकट्ठी हो रही है
बहुत-सी इच्छाएँ
उनके ताप में स्घन होगी
चलने की इच्छा
पूरी गाड़ी में पैदा होगा
चल देने का विचार
जब हम उतरेंगे
अपने-अपने स्टेशन पर
हमारे हिस्से के
अधजले कोयले और राख
वहीं झर जाएंगे
हम पहुँचेंगे
जलते-बुझते धीरे-धीरे घर