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स्त्री-शक्ति / मंजुला सक्सेना

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मैं सगर्भा, सार्गर्भा , ब्रह्म का विस्तार,
जीव की हूँ वासना तो विज्ञ का संसार ।

शक्ति का अवतार हूँ अस्तित्व का आधार
धारिणी समभाव की कर्षण करूँ अहंकार

कामिनी हूँ 'काम' की हूँ जन्मति भी राम
पुण्य रूपा पापिनी हूँ पुरुष का आयाम,

अग्नि-सी हूँ दाहक पर देती हूँ विश्राम
शव बना सकती हूँ 'शिव',माधुर्यमय घनश्याम


रचनाकाल : 25 फ़रवरी 2009