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स्त्री / नंद चतुर्वेदी

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स्त्री का काम प्रेम करना है
स्त्री का काम दया करना है
स्त्री का काम मोहित करना है
पिटना है
पानी भरना है
पीसना है चक्की
उदास दिनों की

हम स्त्री की प्रशंसा करते हैं
उसके धीरज की
माँ बनने की
कपड़े धोने की
झाडू लगाने की

दिन निकल गया है स्त्री के लिए
उठो
रात हो गयी है स्त्री के लिए
सो जाओ

हमें रंज है तुम वैसी नहीं बनीं
वैसी अमरीकन, फ्रेंच, जर्मन
हमें खुशी है हमनें तुम्हें वैसी नहीं बनने दिया
तुमने किसी से हँसकर बात नहीं की
जैसा कहा वैसा ही किया
यह वधस्थल है यहीं बँधी रहीं

स्त्री का काम सेवा करना है
स्वागत करना है
चाय बनाना है
लगातार मुस्कुराना है
अपने थके बीमार चेहरे को चमकाना है

स्त्री का काम शान्त रहना है
कबाड़खाने की चीज होना है
पुरानी टूटी-फूटी
लेकिन देखने लायक।