भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्त्री का सौंदर्य / सांत्वना श्रीकांत
Kavita Kosh से
स्त्री ने अपने पाँव के नाखून को ध्यान से देखा
सौन्दर्य की परिभाषा का स्व आकलन किया
रोटी की गोलाई और ब्रह्मांड के आकार में, अंतर खोजा
आँखों के नमक और समुद्र के खारेपन की तह तक थाह ली
पाया कि
प्रकृति का समर्पण
और वह स्त्री पूरक थे ।
पूर्णता की समस्त परीक्षा में
अव्वल आने पर ही चुना गया था उसे ।
देर तक सोचती रही…
प्रेम हमेशा अपूर्ण ही क्यों रहा उसके लिए
कभी ईश्वर का गूँगापन कोसती
कभी प्रेमी के के स्वभाव को
दरअसल वह प्रेम की अपूर्णता
और अपने अभागेपन में अपूर्ण होती गई।