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स्पर्श / अमरजीत कौंके

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साँवले
बहुत साधारण से
हाथ थे वे
जिन्हें
यह भी नहीं था मालूम
कि वे हाथ हैं
सृष्टि रचने वाले
दुनिया को
ख़ूबसूरत बनाने वाले

लेकिन अचानक
प्यार से लबालब दो होठों ने
उन हाथों को क्या छुआ
कि हाथ सिहर उठे

साँवले से
उन हाथों को
पहली बार एहसास हुआ
कि वे हाथ है
सृष्टि की
सब से अज़ीम वस्तु

हाथों को
पहली बार एहसास हुआ
कि वे हाथ हैं
सृष्टि को रचने वाले
दुनिया को
ख़ूबसूरत बनाने वाले ।।


मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा