भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्मृतियाँ / अनुलता राज नायर
Kavita Kosh से
तुम्हारी स्मृतियाँ पल रही हैं
मेरे मन की
घनी अमराई में|
कुछ उम्मीद भरी बातें अक्सर
झाँकने लगतीं है
जैसे
बूढ़े पीपल की कोटर से झांकते हों
काली कोयल के बच्चे!!
इन स्मृतियाँ ने यात्रा की है
नंगे पांव
मौसम दर मौसम
सूखे से सावन तक
बचपन से यौवन तक|
और कुछ स्मृतियाँ तुम्हारी
छिपी हैं कहीं भीतर
और आपस में स्नेहिल संवाद करती हैं,
जैसे हम छिपते थे दरख्तों के पीछे
अपने सपनों की अदला बदली करने को|
तुम नहीं
पर स्मृतियाँ अब भी मेरे साथ हैं
वे नहीं गयीं तेरे साथ शहर!!
मुझे स्मरण है अब भी तेरी हर बात,
तेरा प्रेम,तेरी हँसी,तेरी ठिठोली
और जामुन के बहाने से,
खिलाई थी तूने जो निम्बोली!!
अब तक जुबां पर
जस का तस रक्खा है
वो कड़वा स्वाद
अतीत की स्मृतियों का!!