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स्याम! मैं तेरी चेरी रे! / स्वामी सनातनदेव
Kavita Kosh से
ध्वनि जिला काफी, कहरवा 2.9.1974
स्याम! मैं तेरी चेरी रे!
तुव पद-पंकज की प्रीति नाथ! बस सम्पति मेरी रे!
ये तन-मन सब स्याम! तिहारे।
केवल तुम ही भये हमारे।
मो जीवनके तुमहि सहारे।
भई मैं सब विधि तेरी रे॥1॥
तुमहिं छाँड़ि अब मैं कित जाऊँ।
कहूँ न दूजो निजजन पाऊँ।
तुमहीसों नित नेह लगाऊँ।
यही अब मति-गति मेरी रे!॥2॥
द्वारे ठाड़ी करहु हजूरी।
करूँ तिहारी आग्या पूरी।
पाऊँ तव पद-प्रीति मजूरी।
यही दिन-चरिया मेरी रे!॥3॥
मोहिं न अब कछु और सुहावै।
तुव पद तजि मन कतहुँ न जावै।
निसि-दिन बस पद-तल ही ध्यावै।
रही कोउ ईति न मेरी रे!॥4॥
दूरी गयी भयी मैं तेरी।
पद-पदमें तब करुना हेरी।
रही न कोउ कामना मेरी।
चरन-रति ही गति मेरी रे!॥5॥