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स्याम! यह मेरो परम सुहाग / स्वामी सनातनदेव

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राग सारंग, तीन ताल 24.6.1974

स्याम! यह मेरो परम सुहाग।
तुमसों नेह भयो नँदनन्दन! सभी विषय-विष त्यागि॥
इह पर के कोउ सुख न चहत चित, लगी तुमहि सों लाग।
बढ़त निरन्तर तुव पद-पंकज अमल-धवल अनुराग॥1॥
पै एते हीमें न तोष है, सुलगत उर कछु आग।
का तुव दरस-परस हूँ को हरि! हुइहै कबहुँ सुहाग॥2॥
कबहुँ कि पाय पुलकिहै यह तनु तुव पद-पदुम-पराग।
निरखि-निरखि मधुमयि मूरति तव उमहहिगो अनुराग॥3॥
तुव रति ही निज सम्पति मेरी, और न कछु हिय माँग।
रहों तिहारो मूक जन्त्र ह्वै निज की निजता त्याग॥4॥
चहों न कहों न लहों और कछु-रहे हिये यह जाग।
जोऊँ मरूँ तिहारो ही ह्वै, सबसों होय विराग॥5॥