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स्याम-सो साँचौ स्नेही कौन / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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स्याम-सो साँचौ स्नेही कौन ?
को चित दे‌इ सुनै सब मन की, मन की राखै कौन?
को मो दृगन सलिल-कन देखत ही ह्वै जाय अधीर।
को निज कर सौं पौंछि अश्रु-जल, सुहृद बँधावै धीर॥
कोमल हाथ पीठ पर ड्डेरै, धीरज दै पुचकारै।
मम आसा-लतिका की जड़ में मधुर अमी-रस ढारै॥
मीठें-मीठें बोलि सिहावै, हिय सौं नित सुख साधै।
कितनौ बड़ौ, भूलि सब बड़पन मेरौ मन आराधै॥
जाके पद-पराग-परसन-हित नित सुरपति ललचावै।
मो-सी अधम गाँव की ग्वारिनि केहि लेखे महँ आवैं॥
तदपि मोहि भूलत नहिं कबहूँ, खरौ अपनपौ जानै।
मेरे सुख सौं सुखी होय, मो दुख में अति दुख मानै॥
जाके चरन-कमल निर्मल मुनि-मानस में नहिं आवै।
सो अति अगम प्रेम-परबस मोहि अपने हृदै बसावै॥