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स्याह बैंगनी उदासी में सिहरती लड़की / संगीता गुप्ता
Kavita Kosh से
दो टहनियों के बीच
अटका एक टुकड़ा
रक्ताभ आसमानी
सूर्य को समर्पित
एकनिष्ठ सूरजमुखी का दमकता पीत वर्ण
प्रेम में विभोर
गुलमोहर की
दहकती लाल कामनाएं
अपराजिता की
गहन नीली रहस्यमयता
या बेला की
भीनी - भीनी उज्ज्वलता
क्या दूं उसे
देर तक उमड़ती - घुमड़ती
प्रेम में
आकंठ डूबी लड़की
एक अरसे बाद
देखती
सपनों की गुनगुनाहट में
तल्लीन लड़की का
तब्दील होना -
उचाट, गृहस्थी के दांव - पेंच में
बेतरह उलझे,
समझदारी, संजीदगी के बोझ तले दबते रंगों को
स्याह बैंगनी उदासी में
डूबते - उतराते
और
भय से सिहर उठती है लड़की ...