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स्वगत / शैलप्रिया

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कविता
सहेली की शाल नहीं
जिसे मौसम के मुताबिक
माँग कर लपेट लिया जाए

कविता मेरा मन है संवेदना है
मुझसे फूटी हुई रसधारा

कविता मैं हूँ
और वह मेरी सृजनशीलता है
मेरी कोख / मेरी जिजीविषा का विस्तार

इससे अधिक सही और सच्ची
कोई बात मैं कह नहीं सकती...