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स्वतंत्र ख़ुशी / चन्द्र गुरुङ
Kavita Kosh से
कभी-कभार
आकाश में उड़ते-उड़ते, थकान से पंख ग़लता है
आकाश में उड़ते-उड़ते, प्यास से गला सूखता है
आकाश में उड़ते-उड़ते, भूख सताती है
आकाश में उड़ते-उड़ते, बरसात भिगोती है
आकाश में उड़ते-उड़ते, धूप झुलसाती है
परंतु वह पक्षी एक स्वतंत्र
ख़ुशी से भरी ज़िन्दगी उड़ता है।