स्वप्न पुष्प / अंतर्यात्रा / परंतप मिश्र
जीवन का अविरल प्रवाह
हृदय की धरा में उपस्थित कुछ सुप्त बीज
पल्लवित हो चले थे मस्तिष्क की उर्वरा पर
मेरे सपनों की छाया चित्र की तरह
मनमोहक विविध रंगों की कलियाँ एवम पुष्प
मेरे विचारों की तरह अनन्त रूप लेकर
इन आकर्षक पुष्पों की शृंखला
मेरे मन की बगिया में पुष्पित हुई थी
एक कुशल माली की भाँति
मैंने यह सुंदर उद्यान बनाया था
बहुरंगी तितलियाँ नाजुक पंखुड़ियों पर थिरकती थीं'
मधु के लोभी भ्रमर दल की मादक गूँज फैली थी चारो ओर।
नवयौवना सी आत्ममुग्ध कमल पंक्तियाँ
मादक लताओं का प्रीतिकर आलिंगन पाकर
प्रति दिन आनन्द और सुवास से परिपूर्ण
मधुर एवं रोमांचित रात्रि-पल।
एक स्वप्न की अनुभूति ही थी।
कल्पना लोक में विचरण करते हुए
कई बार आकाश के अंतिम छोर तक गया
तो कई बार पाताल की गहराईयाँ भी नापीं
कभी घंटों साथ - साथ रहे
और कभी अजनबी की तरह भी।
इस तरह मिलते और बिछड़ते
खोते और पाते
चलता रहा जीवन
और मैं कर भी क्या सकता था
कल्पनाओं के लोक में एक अनजान की तरह
बह रहा था लहरों के साथ।
वे लहरें एक रमणीय नर्तकी की भाँति
इतराती और बलखाती रहीं
यह एक मेरी आँखों का भ्रम था या सपना
बड़ा ही प्रीतिकर था मेरे लिए
पर मैं कैसे इसपर विश्वास कर सकता था?
कैसे इनके साथ जीवन जी सकता था?
मेरा इनका क्या सम्बन्ध हो सकता था?
नींद की गहराइयों में वे मेरे साथ होते थे
जागते ही सबकुछ एक स्वप्न हो जाता था
अचेतन में साहचर्य और चेतनता में वियोग
परन्तु मेरे लिए यह एक अनुभव रहा
जीवन का एक और पहलू
मेरी अबोधता, मेरे सपने
मेरा पाना, मेरा खोना
यथार्थ और कल्पना का जीवन
जो भी कुछ था
वो मेरा अपना ही था
मेरी प्रिय कल्पनाएँ
मेरे सपनों की
पल्लवित पुष्पित वाटिका