भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वर-साधना / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सतत आश-विश्वास के स्वर
समय-बीन पर मैं बजाता रहा हूँ !

डगर पर घिरा है अँधेरा सघन,
भयावह निखिल आज वातावरण,
घटाएँ घिरीं और गरजा गगन,
मरण की चिता पर विजय-गान गाता रहा हूँ !

समेटो मनुज प्राण-साहस अमर,
अनल में तपो जो लगा है प्रखर,
जवानी बड़ी जायगी यों निखर,
सुनाकर सबल स्वर जगत को जगाता रहा हूँ !