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स्वर्ग / कविता कानन / रंजना वर्मा

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पर्वत श्रृंखलाएं
निहार रहीं
अपना प्रतिबिम्ब
झील का दर्पण
हुआ सुवासित
पा कर
हरियाली का स्पर्श
किनारे बंधी नौका
दे रही आमंत्रण
जल विहार का।
आओ प्रकृति से
मनुहार करें
इस अनुपम सौंदर्य को
आत्मसात करें।
यही है स्वर्ग
यहीं है मुक्ति
निसर्ग की गोद मे।