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स्वर्गक अर्थ / शम्भुनाथ मिश्र

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पन्द्रह वर्षक पोता पुछलक
ककरा कहैत छै स्वर्ग अहाँ से बुझै छियै?
जँ बुझै छियै तँ कहू कने हमरा बुझाय,
हमरा नहि ई फड़िछाइत अछि जे
कोन देश वा महादेशमे छै पड़ैत ई स्वर्ग
किए तँ विश्वक जे अछि मानचित्र
हमरा सब लग उपलब्ध
ताहिमे स्वर्गक नहि छै चर्च।
जानि नहि कोन द्वीप वा महाद्वीपमे
छै स्वर्गक अस्तित्व बुझल नहि
अयलहुँ बूझक लेल
थीक कोनो पक्षीकेर नाम
आ कि अछि रत्नक कोनहुँ नाम
थिकनि कोनहुँ ऋषिकेर ई नाम
आ कि अछि जगहक कोनो नाम
जतयसँ उपटि-उपटि कऽ हम सब छी बसि गेल
किच्छु नहि फुरा रहल,
तेँ अयलहुँ हम पुछबाक लेल
की भऽ गेलैक निर्धारण
किंवा अन्वेषण कार्यहिमे लागल छथि समस्त विद्वान?
बुझा कय करू मोन निश्चिन्त,
कहब तँ लीखि देब हम तुरत
हेतै संयुक्त सकार-वकार
गकारक ऊपर लगतै रेफ
मोनमे अछि जिज्ञासा
कोन जाति आ कोन धर्मकेर लोकक छैक निवास
जानि नहि केहन रंग छै केहन रूप छै
केहन माटि छै, केहन पानि छै,
गरम हवा, ठंढा बसात, अन्हर-बिहाड़ि, वरखा-बुन्नी
सेहो अबैत छै, नहि अबैत छै
रौद-पानि सेहो लगैत छै, नहि लगैत छै,
अछि कतेक जिज्ञासा बाबा,
कहि ने सकै छी अपन मनक सब बात,
तखन बाबा बजला जे सुनह हमर ई कथ्य
स्वर्ग केर अर्थ, स्वर्ग केर तथ्य होइत छै गूढ़
मुदा एतबे बूझह जे जगहक थिकै न नाम
कोनहुँ सागर किंवा धरतीक गर्भमे
संचित रत्नक नाम थिकै नहि ‘स्वर्ग’
किन्तु व्याकरण दृष्टिसँ ‘स्वर्ग’ शब्द
संज्ञाक कोटिमे अछि पड़ैत,
भगवानक छनि आवास जतय,
तकरा सब स्वर्ग कहैछ एतय,
धरि प्रश्न उठैछ जखन कण-कणमे
ईश्वर करथि निवास
तखन पुनि ‘स्वर्ग’ शब्दकेर
निर्माणक आवश्यकता पड़लैक कोन?
ओना व्युत्पत्ति दृष्टिसँ ‘स्वर्ग’ केर व्युत्पत्ति
एखन तोँ नहि बुझबह,
धरि मूल बात बूझह बौआ जे
चारि बात जँ होय कतहु उपलब्ध कहाबय स्वर्ग-
पहिल थिक निर्मल होय शरीर,
कहक अछि भाव हमर जे
स्वस्थ रहब यदि अपने
तखनहि स्वर्गक अनुभव हैत,
तखन पुनि बालबोध अछि दैत जखन टहलान,
खनहि आङनसँ जाय दलान
भेटै छै स्वर्गहिकेर आनन्द,
दम्पती होथि मनक अनुकूल
तहूमे स्वर्गहिकेर सुख छैक,
तथा चारिम आ अन्तिम बात
होथि सन्तान पिताकेर आज्ञाकेँ मानैत
जाहि घरमे हो चारू बात
थीक ओ स्वर्गहिकेर प्रतीक,
अहाँक वयसे कतेक अछि एखन
ताहिमे कतबा कते बुझाउ,
रहै छै दान, यज्ञ, तपकेर जतय आधिक्य
ततहि भगवान करै छथि वास
भजनमे बढ़त जखन विश्वास,
हृदयमे बढ़त अनेरो शान्ति
घरक सबलोक हास-परिहास
युक्त संयुक्त ढंगसँ रहय मुदित सब स्वस्थ
कहाबय ‘स्वर्ग’ सैह, तेँ एहीठाम छै स्वर्ग बुझू,
बजला बाबा-
जहिना-जहिना ई वयस बढ़त
तहिना-तहिना सब बात जैत सोझराय
आइ एतबे धरि रहय दियौक।